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Tulsi Gowda: पर्यावरण की प्रेरणा स्रोत ‘वृक्ष माता’ का निधन

Tulsi Gowda: भारत की धरती पर ऐसे कई महान लोग हुए हैं जिन्होंने अपने जीवन को समाज और प्रकृति की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। ऐसी ही एक महान हस्ती थीं तुलसी गौड़ा, जिन्हें ‘वृक्ष माता’ के नाम से जाना जाता था। 86 वर्ष की उम्र में सोमवार को उनका निधन हो गया। तुलसी गौड़ा कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले के अंकोला तालुक के हनाली गांव की रहने वाली थीं।

प्राकृतिक संरक्षण की अनमोल विरासत

तुलसी गौड़ा का जन्म हलक्की जनजाति में हुआ था। उन्होंने बचपन से ही प्रकृति के प्रति अद्वितीय प्रेम और जुड़ाव को विकसित किया। शिक्षा के अभाव के बावजूद, उन्होंने पेड़-पौधों के बारे में इतना गहरा ज्ञान अर्जित किया कि उन्हें ‘फॉरेस्ट की एनसाइक्लोपीडिया’ के रूप में जाना जाने लगा।

तुलसी गौड़ा ने अपना जीवन पर्यावरण संरक्षण को समर्पित कर दिया। उन्होंने हजारों पौधे लगाए और उन्हें अपने बच्चों की तरह पाला। उनके जीवन की विशेषता यह थी कि वह केवल पौधे लगाकर ही नहीं रुकती थीं, बल्कि उनकी देखभाल तब तक करती थीं जब तक वे पूरी तरह से विकसित न हो जाएं।

पद्म श्री से सम्मानित

तुलसी गौड़ा को 2020 में भारत सरकार ने ‘पद्म श्री’ से सम्मानित किया। यह सम्मान उन्हें उनके अतुलनीय योगदान के लिए दिया गया था। उन्होंने यह सम्मान नंगे पांव और पारंपरिक जनजातीय पोशाक में ग्रहण किया, जिसने उनकी सादगी और समर्पण को और अधिक प्रेरणादायक बना दिया। इसके अलावा, उन्हें इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार से भी नवाजा गया।

Tulsi Gowda: पर्यावरण की प्रेरणा स्रोत 'वृक्ष माता' का निधन

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पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पण

तुलसी गौड़ा ने अपने जीवनकाल में एक लाख से अधिक पौधे लगाए। वह पेड़-पौधों की प्रजातियों और उनके औषधीय गुणों के बारे में गहरा ज्ञान रखती थीं। यह ज्ञान उन्होंने अपने अनुभवों से अर्जित किया था।

तुलसी गौड़ा ने कर्नाटक के वन विभाग में भी सेवा दी। उन्होंने 14 वर्षों तक वन विभाग के नर्सरी में काम किया। सेवा से सेवानिवृत्ति के बाद भी वह पौधों को जीवन देने के कार्य में लगी रहीं। उनकी यह सेवा केवल एक काम नहीं, बल्कि उनके जीवन का लक्ष्य थी।

प्राकृतिक संरक्षण की जनजातीय परंपरा

तुलसी गौड़ा का पर्यावरण के प्रति प्रेम उनकी जनजातीय परंपरा से उपजा था। जनजातीय समाज सदियों से प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जी रहा है। हलक्की जनजाति से संबंधित तुलसी गौड़ा ने अपने समुदाय की परंपराओं और मूल्यों को आगे बढ़ाते हुए पर्यावरण संरक्षण में योगदान दिया।

जनजातीय समाज की विशेषता यह है कि वे प्रकृति का उपयोग बिना लालच के करते हैं और उसे संरक्षित भी करते हैं। तुलसी गौड़ा ने अपने जीवन में इस मूलमंत्र को आत्मसात किया और इसे अपने कार्यों के माध्यम से समाज तक पहुंचाया।

प्रधानमंत्री मोदी ने दी श्रद्धांजलि

तुलसी गौड़ा के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गहरा शोक व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि तुलसी गौड़ा का जीवन पर्यावरण संरक्षण के लिए एक मार्गदर्शक की तरह है। उनके द्वारा लगाए गए पौधे और उनकी शिक्षाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेंगी।

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समाज के लिए प्रेरणा

तुलसी गौड़ा का जीवन इस बात का प्रमाण है कि पर्यावरण संरक्षण में योगदान देने के लिए बड़ी डिग्रियों या उच्च पदों की आवश्यकता नहीं होती। अपने अनुभवों, समर्पण और प्रकृति के प्रति अटूट प्रेम के बल पर उन्होंने जो किया, वह असाधारण है।

तुलसी गौड़ा का निधन न केवल उनके परिवार और समुदाय के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनका जीवन और कार्य हम सभी को प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। उनके योगदान को सदा याद रखा जाएगा।

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